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सोमवार, 20 मई 2019

क्या हम एलियंस है ? भाग-4, विषय- प्रजनन

                                                                   मैंने इस बारे में अपने पहले लेख में सूचित किया था। इस कारन इस विषय पर और ज्यादा स्पष्टीकरण देने की जरुरत नहीं है।  लेकिन कुछ मुद्दे है जो मै पिछेल लेख में नहीं रख पाया तो उन्हें इस लेख में स्पष्ट करने की कोशीश करूँगा। प्रजनन भी एक अहम मुद्दा है जो इंसानो को दूसरे जानवरो से अलग करता है। धरतीके सभी जीव प्रजनन द्वारा अपना वंश आगे बढ़ाते है। इस चक्र इंसान भी नहीं छूटा है। लेकिन धरतीपर रहने वाले सभी जीवों का प्रजनन का समय तय होता है। लेकिन इंसानो पर ऐसी कोई समय सीमा लागु नहीं होती। साल के खास समय पर जीवो में संभोग की प्रवृत्ति जागृत होती है और बादमे प्रजनन। लेकिन इंसानो के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है। हम अगर देखे तो बाकि जीवो का प्रजनन का समय ज्यादा तर बरसात के दिनों में होता है। लेकिन इंसानो के बच्चे तो साल के किसी भी मौसम में जन्म लेते है।  साल के कुछ खास दिनोमे ही बाकि जीव संभोग करते दिखाई देते है।  लेकिन इंसान तो कभी भी संभोग करते है। साथ इंसान के संभोग का उद्देश्य आनंद लेना होता हैइंसान जब चाहे तब संभोग करता है।  जबकि बाकीके जानवरो में संभोग का उद्देश्य अपने वंश को आगे बढ़ाना, प्रजनन करना होता है। और बाकि के जीव साल के खास समय पर ही संभोग करते है। ये दो बबाते इंसान और बाकि जीवो के मूलभूत स्वभाव में जो अंतर है उसे साफ कराती है।
                                                                धरती के बाकि जीवो की संताने जन्मने बाद कुदरत के हालत में जीने के काबिल होती है। उदहारण के तौर पर हम हिरण के बछड़े को लेते है। अगर हिरण का बछड़ा बारिश में जन्म लेता है तो उसे कुछ भी नहीं होगा। लेकिन अगर इंसान का नवजात शिशु अगर बरसात के पानी में भीगता है तो वोह जिन्दा भी नहीं बच पायेगा। क्युँ की बरसात के पानी के कारन उसे ठण्ड लगकर निमोनियाँ हो जायेगा और उसका नाजुक शरीर इसे नहीं कर सकने के कारन उसकी मृत्यु हो जाएगी। यहाँ पर एक सवाल खड़ा होता है की दूसरे जीवो की तुलना में इंसानो के शिशु इतने कमजोर क्युँ होते है ? जिन्हे हम अपना रिश्तेदार कहते है, उन बंदरो के बच्चे कुदरत के विपरीत हालात में भी आराम से जी लेते है। और उन्ही हालातो में तो इंसानी बच्चे दम तोड़ देंगे। आखिर ये क्या चमत्कार है ? क्या हम कुदरत की नाजायज औलाद है ?
                                                                 संभोग के बाद जब मादा गर्भवती होती है तब उसके अंदर संभोग की कामना समाप्त हो जाती है। लेकिन इंसानो में तो गर्भावस्था के दौरान भी स्त्रियों में संभोग की कामना बनी रहती है। प्रजनन के समय बाकि जीवो में मादाये इतनी कमजोर नहीं होती जीतनी इंसानी स्त्री कमजोर होती है। आखिर इसकी क्या वजह है की इंसानी शरीर की रचना दूसरे जीवो से इतनी अलग है ? ये सब बाते जानकर भी कुछ महाशय इस बात के दावे पर अड़े हुए है की हम वानरों से ही विकशित हुए है। ये वोह लोग है जो संभावनाओं को समझना ही नहीं चाहते। मगर ये बोहोत बड़ी गलती कर रहे है। इस वोह लोग समाज को अँधेरे में रख रहे है।

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